मनुष्य (मानव) की पहचान


दो हाथ ,दो पैर ,दो आँखे ,दो कान ,एक मुह ,एक नक् ,सिर और मनुष्य जैसा सरीर का होना ये तो कोई मनुष्य की पहचान नहीं है ! आज दुनिया मे मनुष्य के रूप में दिखलाई देनेवालो की आबादी आज 7 अरब 20 करोड़ 21 लाख से ज्यादा की हो चुकी है !क्या सभी को मनुष्य भी कहा जा सकता है, या उनमे से अधिकांश दो पेर वाले मनुष्य जैसे दिखने वाले जानवर भी मिल सकते है !  
इस संसार मे राम भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ते है तो रावण भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ता है, श्री कृष्ण भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ते है तो कंस भी मनुष्य के रूप मे दिखालाई पड़ता है, युधिष्ठिर भी मनुष्य के रूप मे दिखालाई पड़ते ही तो दुर्योधन भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ता है , बुद्ध महावीर नानक हिटलर माओ ,मुसोलिनी लेनिन आदि भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ते है ! ईसा जी मनुष्य के रूप मे दिखला पड़ते है और उनको फांसी देने वाले भी मनुष्य के रूप मे दिखलाई पड़ते है स्वामी दयानंद भी मनुष्य के रूप मे दिखला पड़ते है ! इस तरह की लिष्ट बहुत लम्बी भी की जा सकती है.
आज के संसार मे दस हजार मे से ९९९९ व्यक्ति मनुष्य होने का ढोंग करते है , केवल उनमे से एक व्यक्ति को सद्गुणो के कारण मनुष्य कहा सकता है इस अनुपात को कम ज्यादा भी किया जा सकता है ! इस लिये हम कहना चाहेंगे की सभी मनुष्य दिखलाई देने वालो पर कदापि विश्वास मत कीजिये उसको जानिये, उसको परखिये ! जिनके पास मानवता के गुण हो उनको ही सिर्फ मनुष्य कहिये !
मंदिर जाने वाले,नमाज़ पढने वालेचर्च जाने वाले, गुरुद्वारा जाने वाले , किसी भी तरह केउपवास करनेवाले किसी भी तरह के ईश्वर को मानने वाले भाषन देने वाले लेखक् होने वालो आदि को मनुष्य समझने की भूल मत कीजिये ऐसे पाखंडियो की भीड़ संन्सार मे बहुत है ! दूसरो को उपदेश देने वाले भी बहुत मिल जायेंगे उसका आचरण कैसा है , उसको जरूर देखिये, जानिये, उसको परखिये, जब बहुत अच्छा महसूस हो तब उसको मनुष्य कहने का सहास कीजिये.हम जो कहते है वही सत्य नही है . किसी भी किताब मे लिखी हुई बात सत्य नही है , किसी विद्वान ,किसी विख्यात व्यक्ति कीहर बातसत्य नही है, जो आपके दिमाग मे अपील करे, ह्रदय गवाही दे, अन्तःकरण आवाज दे , मानवता के हितमे हो, उसमे एक व्यापकता हो, तब उस बात आप सभी स्वीकार कर सकते है !

हमने अपनी एक बात रखी है, उसमे कुछ सुझाव भी और जुड़ सकते है, इस लेख की आलोचना व समर्थन भी संभव है , हम सभी तरह के विचारो का स्वागत करने को उत्सुक रहेंगे.
सही मायनें में मनुष्य वो है जो मननशील है, विवेकी है, ज्ञानी, सहनशील है एवं जिसके दिल में सभी के लिया दया ,करुना ,प्रेम ,नम्रत ,नियम-संयम ,इन्द्रियों पर नियंत्रण आदि दिव्य गुणों से युक्त हो वही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है और जिसमे इतने गुण होगें वह एक आदर्श मनुष्य होगा अर्थात वो एक संत, भक्त ही होगा !
अतः किसी भी मनुष्य की वास्तविक भगवद भक्ति तो ब्रह्म-ज्ञान प्रकट होने के बाद ही आरम्भ होती है, मनुष्य में ब्रह्म-ज्ञान का प्रकट होना ही ब्रह्म साक्षात्कार कहलाता है, जिस मनुष्य में ब्रह्म-ज्ञान प्रकट हो जाता है वही ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त होता है और वही वास्तविक ब्राह्मण होता है, उसके द्वारा बोले जाने वाला प्रत्येक शब्द ब्रह्म-वाक्य होता है।
जगदगुरु आदि शंकराचार्य जी कहते हैं....
अहं ब्रह्मास्मि!
हम सभी परब्रह्म के अंश ब्रह्म स्वरूप ही हैं।
इसी पर गुरु नानक देव जी कहते हैं....
हर घट मेरा सांइया, खाली घट न कोय।
बलिहारी जा घट की, ता में प्रकट होय॥
हर प्राणी के शरीर में भगवान ब्रह्म (आत्मा) स्वरूप में स्थित रहते है, कोई भी प्राणी का शरीर ऎसा नहीं है जिसमें भगवान स्थित नहीं होते हैं, लेकिन जीवन सार्थक तो केवल उस शरीर का होता है, जिस शरीर में वह प्रकट होते हैं।
संसार में प्रत्येक कर्म को करने के लिये क्रमश: ही चलने का विधान है, जिस प्रकार आगे बढ़ने के लिये पिछले कदम को छोड़ना पड़ता है, जब तक पिछले कदम को नहीं छोड़ते है तो अगला कदम नहीं उठ सकता है तब तक कोई आगे नहीं बढ़
सकता हैं। 
ब्रह्म-ज्ञान सभी प्राणी मात्र में स्थित है, क्योंकि जहाँ ब्रह्म है वहीं ब्रह्मज्ञान है, आत्मा ही ब्रह्म है जो प्रत्येक प्राणी मात्र में स्थित है।

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