श्रीमद्भागवत गीता को पडने से पहले समझना चाहिए

गीता अध्याय-1 श्लोक-1




धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: ।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ।।1:1।।

अर्थ

- हे संजय[2] ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र[3] में एकत्रित, युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु[4] के पुत्रों ने क्या किया ? ।।1:1।।
भावार्थ - ध्रतराष्ट्र एवं संजय के अनुसार धर्मभूमि कुरुक्षेत्र प्रथ्वी का एक टुकड़ा है जहाँ पर युद्ध होना था l परन्तु अध्याय १३, श्लोक १ के अनुसार आगे देखे l

गीता अध्याय-13 श्लोक-1



श्रीभगवानुवाच:


इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते ।

एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ।।1।।

भावार्थ - हे अर्जुन[1] ! यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्त्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं ।।1।।
योगेश्वर श्री कृष्ण के अनुसार -
यह सरीर ही कुरुक्षेत्र है जिसमे दो प्रवृत्तियों देवीय एवं असुरी प्रवृति के मध्य संघर्ष होना हैl जव देवीय सेना जीतती है तो यही धर्मक्षेत्र तथा असुरी सेना जीतती हैlतो यही कुरुक्षेत्र है क्योकि हर व्यक्ति के अन्दर दो प्रवृतियां होती है और जवतक दौनों प्रवृतियां रहेगी तवतक युद्ध जरी रहेगा l 
अतः यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्त्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं

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