सच और झूठ (आदिग्रंथ से)


संतो ने परमात्मा को सच कहा है और बाकी सारी दुनिया को झूठ कहा है.....इसका क्या मतलब है?
गुरु नानक साहिब जी  ने आदि ग्रन्थ में परमात्मा को एको सतनाम कहा है.
इसका मतलब वह परमात्मा एक है ,, दो या तीन परमात्मा नहीं है...और वह नाम रूप है..यानि उसका असल स्वरुप नाम है.
नाम ही परमात्मा है और परमात्मा ही नाम है.
नाम यानि वह शक्ति जो इस रचना के कण कण में समायी हुयी है और हमारे अंदर भी है.
और अपने नाम की यानि परमात्मा की महिमा करते हूवे फ़रमाया है....
आदि सच.. जुगादि सच...
है भी सच.. नानक होसी भी सच.
सच यानि जो कभी नाश नहीं होता कभी बदलता नहीं है.,,अमर और अविनाशी है..हमेशा एक रंग, एक रूप, एक रस रहता है.
आदि सच ..यानि...अनादि काल से सच है....जब यह दुनिया नहीं बनी थी तब भी वह परमात्मा था..उसकी हस्ती कायम थी.
जुगादि सच..यानि...जब यह दुनिया बनी और युगो कि गिनती शुरू हुयी..तब से ले कर वही सच है...यानि उसकी ही हस्ती कायम है.
है भी सच ....आज भी वही कायम है..
नानक होसी भी सच...और आगे भी हमेशा उसकी ही हस्ती कायम रहेगी..यानि वही रहेगा.
वह परमात्मा ही सच है..जो पहले भी था और आगे भी हमेशा रहेगा ...
तो फिर यह बाकी दुनिया का क्या. है .?
तो आप कहते है...बाकी सब कुड़ है.. यानि झूठ है. नाशवान है ...
कुड़ रजा कुड़ परजा..कुड़ सब संसार
कुड़ मडप कुड़ माड़ी ...कुड़ बैसंहार
आप कहते है..बाकी सारी दुनिया के लोग ...आमिर गरीब सब कुड़ है...यह हाट हवेलिया कुड़ है और उनमे रहने वाले भी कुड़ है...
यानि इस दुनिया में ऐसी कोई चीज़ या जीव ऐसा नहीं है जो हमेशा रहने वाला है. सब कुड़ है..झूठ है. नाशवान है.
और उस सच को भुला कर... झूठ यानि संसार के साथ प्यार करना ही ...अज्ञान है....इंसान के दुःख कर मूल कारण है.
हमें दुनिया के लोगो और चीज़ो से सुख तो मिलता है..लेकिन हमेशा के लिए नहीं...क्यों कि सब नाशवान है..कुड़ है.
हमारा यह शारीर भी कुड़ है...हम अपनी मौत को भूल जाते है..इस लिए इस संसार को अपना समझते है और इसको अपना बनाने की कोशिश करते है.......और इसकी शक्लो और चीज़ो से प्यार करते है.
आप कहते है..
कुड़ कूड़े नेह लगा...विसरिआ करतार
किस नाल कीचे दोस्ती ..सब जग चलणहार.
हमारा यह शारीर भी कुड़ है...और यह शारीर भी इस संसार रुपी कुड़ से ही प्यार करता है...लेकिन हम किसको अपना समझे...सब जाने वाले है...
या वह हमारा साथ छोड़ जायेंगे या हम एक दिन उनको छोड़ कर चले जायेंगे.
और जो सुख था वह दुःख में बदल जायेगा.
इस लिए महात्मा समझते है कि अगर सच्चा यानि हमेश रहने वाला सुख चाहिए तो झूठ यानि इस संसार का प्यार छोड़ो और सच यानि परमात्मा से प्यार करो. जो सद चित्त आनंद है.
यानि जो सदा सच है...चेतना का सागर है..और परम आनंद का भंडार है..परमानन्द है.

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