जीवन का वास्तविक अर्थ ( वाईवल से )
यीशु मसीह के द्वारा जीवन के
अर्थ को बहाल किया जाना -
जीवन का वास्तविक अर्थ, दोनों में अर्थात् वर्तमान और अनन्त काल के लिए, परमेश्वर के साथ
सम्बन्ध की बहाली या पुर्नस्थापना में पाया जाता है जो कि आदम और हव्वा के पाप में
पड़ने के समय खो दी गई थी। परमेश्वर के साथ वह सम्बन्ध केवल उसके पुत्र, यीशु मसीह के द्वारा सम्भव है (प्रेरितों के काम 4:12; यूहन्ना 14:6; यूहन्ना 1:12)। अनन्त जीवन तब
प्राप्त होता है जब कोई अपने पापों का पश्चाताप करता है (और आगे उनको करते नहीं रहना चाहता है) और मसीह हमें बदलता है, नई सृष्टि बनाता है, और हम यीशु मसीह के ऊपर अपने उद्धारकर्ता
के रूप में निर्भर रहते हैं।
जीवन का वास्तविक अर्थ केवल यीशु को अपना
उद्धारकर्ता मान लेने में ही नहीं है, जैसी की यह
आश्चर्यजनक बात है। इसकी बजाय, जीवन का असली अर्थ तब पाया जाता है जब एक
व्यक्ति एक अनुयायी के रूप में मसीह का अनुसरण करता है, उसके द्वारा शिक्षा प्राप्त करके, उसके वचन में उसके
साथ समय व्यतीत करके, प्रार्थना में उसके साथ बातें करके, और उसकी आज्ञाओं का पालन करने में उसके साथ चलता है। अगर आप एक अविश्वासी हैं (या फिर हो सकता है कि एक नए विश्वासी हों), तो हो सकता है कि आप स्वयं को यह कहता हुआ पाएं कि, "यह मुझे कुछ भी रोमांचकारी या संतोषजनक प्रतीत नहीं होता!" परन्तु यीशु ने निम्नलिखित कथन दिए थे :
"हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए
लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने
ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ : और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा
जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है (मत्ती 11:28-30)। "मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएँ और
बहुतायत से पाएँ" (यूहन्ना 10:10)। "यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप का
इन्कार करे और अपना क्रूस उठाये; और मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना
प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पायेगा" (मत्ती 16:24-25)। "यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा" (भजन संहिता 37:4)।
जो कुछ भी ये आयतें कह रही हैं वह यह है
कि हमारे पास एक चुनाव है। हम स्वयं अपने जीवन का मार्गदर्शन जारी रख सकते हैं, जिसका परिणाम एक शून्यता को लाएगा, या हम अपने जीवनों के
लिए पूरे मन से परमेश्वर और उसकी इच्छा का पीछा करना चुन सकते हैं, जिसका परिणाम पूर्णता के जीवन, हमारे अपने हृदय की
इच्छाओं का पूरा होना और संतोष और सन्तुष्टि को प्राप्त होने से भर देगा। ऐसा
इसलिये है क्योंकि हमारा सृष्टिकर्ता हमसे प्रेम करता है और हमारे लिये उत्तम बात
की इच्छा रखता है (जरूरी नहीं कि आसान जीवन हो, परन्तु यह बहुतायत की भरपूरी वाला होगा)।
मसीही जीवन की तुलना उस चुनाव से की जा
सकती है जिसमें खेल के मैदान में मंहगी कुर्सी को खरीद कर निकटता से खेल देखा जाता
है या फिर कम खर्च करके खेल को दूर स्थान से देखा जाता है। परमेश्वर के कार्य को "पहली पँक्ति से देखना" ही ऐसा कुछ है जिसका हमें चुनाव करना चाहिए परन्तु, दुख के साथ कहना पड़ता है, कि ऐसा चुनाव बहुत से लोग नहीं करते हैं। परमेश्वर के कार्यों को पहली बार
देखना मसीह के पूर्ण-हृदय वाले अनुयायी के लिए है जिसने अपने
जीवन में अपनी इच्छाओं का पीछा करना वास्तव में छोड़ दिया है ताकि वह अपने जीवन में
परमेश्वर की इच्छाओं का पीछा कर सके। उन्होंने कीमत चुका दी है (मसीह और उसकी इच्छा के प्रति पूर्ण समर्पण); वे जीवन में भरपूरी का अनुभव कर रहे हैं; और वे स्वयं के लिए, अपने साथियों के लिए, और अपने सृष्टिकर्ता का सामना बिना किसी
पछतावे के कर सकते है। क्या आपने कीमत चुकाई है? क्या आप ऐसा करने की
इच्छा रखते हैं? यदि ऐसा है, तो आप अर्थ और
उद्देश्य के लिये फिर कभी भूखे नहीं रहेंगे।
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